शुक्रिया ए जिंदगी !
इतनी ठोकरें देने के लिए,
शुक्रिया ए जिंदगी।
चलने का न सही,
संभलने का हुनर आ गया।
दूर तलक जाने को,
निकले थे पांव अभागे।
जो लगी ठोकर सफर में,
जहां से चले थे वहीं आ गए।
-जारी
-©कुलदीप मिश्रा
इतनी ठोकरें देने के लिए,
शुक्रिया ए जिंदगी।
चलने का न सही,
संभलने का हुनर आ गया।
दूर तलक जाने को,
निकले थे पांव अभागे।
जो लगी ठोकर सफर में,
जहां से चले थे वहीं आ गए।
-जारी
-©कुलदीप मिश्रा