शुकराना
मुझे ताउम्र तिल तिल कर जलाया आप ने
शरर था मैं मुझे शोला बनाया आप ने
ज़रूरत थी नहीं इसकी मगर ऐसा हुआ
कभी इस दर कभी उस दर नचाया आप ने
हवा तो बस हवा थी सर्द थी या गर्म थी
हवा को आंधियां बनना सिखाया आप ने
मैं बरसों तक रहा हूं जिस्म से बाहर कहीं
ज़रा सोचो मुझे कितना सताया आप ने
जहां में आपका रुतबा रहे क़ायम हुज़ूर
मैं क्या था और मुझको क्या बनाया आप ने
— शिवकुमार बिलगरामी