शीशे की हस्ती
पत्थर के बने ये शहर
शीशे से मुकाबला करते हैं
और जब देखनी हो खुद की तस्वीर को
शीशे से ही काम निकला करते हैं
शीशे की हस्ती नहीं कि पत्थर से तकरा जाए
खैर नहीं पत्थर का जब ये खूद पे आ जाए
शीशे भी दहकते शोलों मे
खूद को उबाला करते हैं ा