” शीशी कहो या बोतल “
” शीशी कहो या बोतल ”
शीशी कहो चाहे बोलो बोतल
तपती दोपहरी में ठंडक पहुंचाऊं
अथाह भंडार भरे रखती मेरे पास
पानी को स्वयं के अन्दर समाऊं,
चलते चलते थक जाए जब राह में
प्यासे पथिक की मैं तृष्णा मिटाऊं
अमीरों का जब हो खरीदने का मन
तब सजावट करने के मैं काम आऊं,
लिखावट में जब करें कलम में प्रयोग
तब तो मैं स्याही की दवात बन जाऊं
कोई बनाए लालटेन, कोई बनाए फूलदान
बेवड़ो के लिए दारू का पव्वा बन जाऊं
कांच से लेकर प्लास्टिक हो चाहे तांबा
स्टील कभी तो मिट्टी और कांसे में ढल जाऊं
मीनू को तो दिखे सिर्फ़ शीशी प्यारी सी
जब मैं विभिन्न रंग और रूपों को अपनाऊं।
Dr.Meenu Poonia