शीर्षक:
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कुछ सकूं दिल को मिले
मुझमे तुम ही समाए हो
इश्क में तुमको ही पाया मैने
न जाने क्यों तुमको ही बसाया दिल मे
इसी चाह में कि मुझे
कुछ सकूं दिल को मिले..!
तुम इश्क कर जाना मुझे
तुम संवार जाना मुझे
तुम ही मेरे स्वप्न में बसे हो
रह रह वक्त याद आता हैं मुझे
कुछ सकूं दिल को मिले..!
मेरी तन्हाई में रहते हो तुम ही
कैसे कटेगी जिन्दगानी मेरी
एक बार खामोशी तोड़ो अपनी
बेचैन बहुत हूँ यादो में तेरी
कुछ सकूं दिल को मिले..!
क्यो बिसराया तुमने मुझको
मैं ही तो प्रेम थी पहला
फिर क्यो तदफ़ाते हो मुझको
चले आओ तुम अब करीब मेरे
कुछ सकूं दिल को मिले
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद