शीर्षक – सोच और उम्र
शीर्षक – सोच और उम्र
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सच हमारी सोच और उम्र ही होती हैं।
हम बचपन जवानी और बुढ़ापे सोचते हैं।
सोच और उम्र ही तो बहुत कुछ कहती हैं।
न तेरा इंतज़ार न मेरा नाम बस रहता हैं।
बस सोच और उम्र ही तो हमारी होती हैं।
वो पूछते हमसे हमारी सोच और उम्र है।
बस यही तो जिंदगी का मंथन करते हैं।
न एहसास और इकरार की सोचते हैं।
बस हमारी सोच और उम्र ही तो होती हैं।
दिल की संवेदना और सहानुभूति होती हैं।
बस वो हमारी सोच और उम्र पर रहते हैं।
सच तो हमारी सोच और उम्र रहती हैं।
प्रेम मोहब्बत इश्क में तो सोच होती हैं।
न उम्र की सोच हम सभी कहां रखते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ,.प्र