शीर्षक – वो कुछ नहीं करती हैं
शीर्षक – वो कुछ नहीं करती हैं
अभी तक तो लोग कहते थे
अब वो कहती हैं कि
“मैं कुछ नहीं करती हूं”
क्योंकि मैं गृहणी हूं
लेकिन कुछ नहीं करती हूं
सुबह उठकर सबसे पहले
टिफिन बनाती हैं फिर
घर बनाती हैं और कहती हैं
मैं कुछ नहीं करती हूं
क्योंकि मैं पैसे नहीं कमाती हूं
दोपहर में फिर से भोजन बनाती हैं
बच्चों को खिलाती हैं, ख़ुद नहीं खाती हैं
कपड़े चूल्हा चौका पुनः करके
फिर परेशान हो जाती हैं और कहती हैं
मैं कुछ नहीं करती हूं क्योंकि मैं पैसे नहीं कमाती हूं
अभी गई हैं बाजार सब्जियां लेने
मोल भाव करके घर तक पैदल आ गई हैं
रिक्शा के कुछ पैसे बचा कर लाई हैं
लेकिन खुश अभी भी नहीं हैं वो फिर यही कहती हैं
मैं कुछ नहीं करती हूं क्योंकि मैं पैसे नहीं कमाती हूं
अब रात का भोजन बना रही हैं
कल सुबह की तैयारी अभी से कर रही हैं
फिर भी वो दुःखी हैं अपने पर धिक्कार रही हैं कि
मैं कुछ ख़ास नहीं कर रही हूं, अपना महत्व गिरा रही हूं
क्योंकि मैं पैसे नहीं कमा रही हूं
वो बच्चों को पढ़ाती हैं
होमवर्क कराती हैं
और कहती हैं दुनियां उन्हें वो कुछ नहीं करती हैं
यह बात अब वो भी मानती हैं क्योंकि वो
पैसे नहीं कमाती हैं बस घर बैठकर खाती हैं
कैसे चलेगा ऐसे नर की नारायणी हो तुम हार गई कैसे
किसने क्या बोला सुन लिया, अपनों का सुना अनसुना किया
क्यों हार रही हो, ख़ुद को नकार रही हो, एक परिवार संभाल रही हो
समझों रिश्तों को, समझो संबंधों को ऐसे क्यों हार रही हो
तुम कुछ भी कर सकती हो, जब साथ तुम्हारे अपने हों
_ सोनम पुनीत दुबे