शीर्षक : यात्रा मंजिल की
दूर है तेरी मंजिल हे राही,तू अपने कदम को बढ़ा ।
ना ठिठक ना दुबक, ना ही सुस्ता कहीं ,
तू चलता ही जा , तू चलता ही जा ,
दूर है तेरी मंजिल हे राही, तू अपने कदम को बढ़ा ।
जो रुक गया तू कहीं तो ए सुन,
अपने नयनों को ना तू सुला ,
सो गए जो कहीं तेरे नैन,
तू मंजिल नहीं पा सकेगा,
दूर है तेरी मंजिल हे राही, तू अपने कदम को बढ़ा ।
ध्यान रखना सदा सामने तुम,
नहीं खुद को देना भुला,
पग तेरे मांगेंगे तुझसे राहत
थोड़ा उनकी भी तू सुनते जा,
दूर है तेरी मंजिल हे राही, तू अपने कदम को बढ़ा ।
देखना एक दिन इस जहाँ में,
हर तरफ होगा गुणगान तेरा,
चाह मंजिल की रखना हृदय में,
होगा आसान सब काम तेरा,
दूर है तेरी मंजिल हे राही, तू अपने कदम को बढ़ा ।
✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
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