शीर्षक – मन मस्तिष्क का द्वंद
शीर्षक – मन मस्तिष्क का द्वंद
कुछ लिखने को मेरा जी तो कर रहा है
लेकिन दिल मेरा कुछ और चाह रहा है
मन मस्तिष्क के द्वंद में उलझा मेरा मन
अब अकेलापन और तन्हाई मांग रहा है
हार जीत की परवाह नहीं है मुझे
लेकिन जीत ही आख़िरी उम्मीद है
रो रो कर आंखों में बसा नीर सुख गया है
समुंदर आंसुओं का दिल में मेरे उतर गया है
एक उम्मीद थी सीने में वो उम्मीदें मर रहीं हैं
भीतर से तोड़ रही हैं बात कुछ और कर रही हैं
हो चाहें समुंदर मेरे भीतर तैरना मुझे आता है
हर चुनौती का मुक़ाबला करना मुझे आता है
_ सोनम पुनीत दुबे