*शीर्षक – प्रेम ..एक सोच*
शीर्षक – प्रेम ..एक सोच
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प्रेम एक सोच बना है।
जीवन में प्रेम कहां है।
स्वार्थ फरेब बसा है।
मतलब का प्रेम बना है।
एक सच और सोच है।
अब सच कहां प्रेम हैं।
धन दौलत की सोच हैं।
बस यही आज प्रेम हैं।
हां सच प्रेम एक सोच हैं।
जिंदगी में बस खेल बना हैं।
सच केवल प्रेम एक सोच हैं।
तेरे मेरे सपने प्रेम परीक्षा हैं।
बस धन के साथ सजे हुए हैं।
सोचे समझे प्रेम एक साथ बना है
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र