शीर्षक—पिता*
शीर्षक—पिता*
काँधे पर बिठा मुझको,
आसमां सा ऊँचा किया,
पिता तुमने हर हालात में,
बस सब कुछ दिया ही दिया,
सोचती रही मैं कैसे हर चीज़
कहने से पहले आ जाती है,
पिता के शाम को लौटते ही,
सारी दुनिया ही मेरी लौट आती है,
माँ के भाल पर सजता मान तुम
हम बच्चों की धड़कन जान हो,
चले सीना चौड़ा करके तेरे संग,
तुम ही हमारी पहचान हो,
तुम्हारे संग जब तक रही,
ना कोई फिक्र ना फाका था,
चेहरे को पढ़कर सब समझ जाते,
कहने का कहाँ मिलता मौका था,
तुम हो उस सूरज के जैसे,
जो परिवार की खातिर जलता रहा,
दुख को छिपा सबको सुख देते,
ऐसे ही पिता होते हैं हाँ,ऐसे ही पिता होते हैं।
15 june 2022 7:26pm
✍स्वरचित
माधुरी शर्मा “मधुर”
अंबाला हरियाणा।