शीर्षक – “तेरे बिना भी क्या जीना”(23)
हर ऋतु मुरझा जाए रे पिया तेरे बिना,
खिलती हुई हर बहार का अमूल्य गहना तू ही तो है ना,
मेरा जागे है सवेरा तुझसे, ढले हैं सांझ तुझसे
काली अंधियारी रातों में पूनम के चांद का तुझी से है उजियारा,
जुड़ी है प्रीत जब से,थामी तूने ही मेरे अहसासों की बागडोर,
ज़िंदगी की नाव में पतवार बनकर निभाया साथ, जीवन के हर मोड़ पर ढाल के रूप में खड़े होकर,
पुराने जंजीरों की बेड़ियों में जकड़ी हुई ज़िंदगी
गुलज़ार हुई है तुमसे,
यूं ही साथ बना रहे सदियों तक हमारा,
क्योंकि मेरी हर सांस के अल्फाज़ जन्मते
हैं तुमसे,
ओ मेरे जीवनसाथी तेरे बगैर जीना
कैसे होगा गंवारा,
हम तो हमेशा ही एक-दूसरे का सहारा पाकर हर तूफान में भी बने हैं सशक्त किनारा,
अब तो ईश्वर से करती हूँ एक ही गुज़ारिश
सलामत रखे सदैव आपको,
क्योंकि आप हो तो
नए राग कल-कल ध्वनि से छिड़ते जाएंगे,
जब तक जीवन में मेरे हर गीत के बोल नवीन सुरों से निखरते जाएंगे तब तक||
आरतीअयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल