शीर्षक-गौरैया
****विलुप्त होती गौरेया दिवस****
आज वृक्ष नही मिलते
जंगल में चहकते पक्षी नही मिलते
पीपल के बड़े वृक्ष नही मिलते
आज गौरेया के घोंसले नही मिलते
कंक्रीट के जंगल चारो तरफ यहाँ अब है मिलते
हर तरफ मानव की लूट जे निशान मिलते
फायदे के लिए काटे जंगल,पेड़ अब नही मिलते
इसलिए ही तो गौरैया की जगह कबूतर हैं मिलते
अब गौरेया का अस्तित्व खतरे में ही दिखता
मानव तो बस पैसों की दौड़ में लगा दिखता
गौरेया के अस्तित्व का अब हल नही दिखता
अब तो कहीं भी गौरेया का रूप ही नही दिखता
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद