शीर्षक : आह मेरे दिल की
देख के हिम्मत उस माता की
आँखे भी भर आती हैं
लेकिन कहूँ क्या सरकारों को
जो थोड़ा ना सकुचाती हैं
हाल बेहाल हुए सब के
मजदूर पलायन को सुनके
पर जाने भला सरकार ही क्यों
कोई ठोस कदम न उठाती हैं
राह चली ममता की मूरत
पेट सम्हालन की खातिर
राह में बच्चा जन देती पर
आह नहीं कर पाती है
कैसे लिखूँ हालत ममता की
भारत की आँखे रोती हैं
जनता है देश की भूखी
सरकारें यहाँ पर सोती हैं
नहीं खबर उन्हें हालत की
मजदूर बिचारा करता क्या
जब घर में अन्न नहीं था
बच्चों के आगे धरता क्या
इतनी विपदा आई लेकिन
देखे सभी नेता यहाँ मौन
अभी वोट का समय नहीं आया
फिर उनको याद दिलाता कौन
रखना यह बात सदा तुम याद
पंडित ए निवेदन करता है
डॉक्टर, पुलिस और सेना का
कर जोड़ समर्थन करता है
लेकिन इन नेताओं को तुम
कभी अपने पास न आने दो
जो सो रहे हैं इस समय
उन्हें किसी को ना जगाने दो
खुद जग कर जब वापस आएं
बाहर ही बाहर जाने दो
अपने गलियों घर में सभी
ना बुलाओ ना आने दो
वोट की नीति में खो देंगे
ए सब खुद की सच्चाई को
आपको देते खुर्चन हैं
खुद खा जाते मलाई को
आहत होना ना कोई
तकलीफ मेरे दिल को थी हुई
देखा था न्यूज जो कल तक की
मेरी जगह कलम मेरी रोई
✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
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