शीर्षक :- आजकल के लोग
शीर्षक :- आजकल के लोग
आजकल के लोग
बड़े आलसी हो गए !
सौ रोग लगे हैं तन में ,
रंग हरा से लाल सी हो गए !!
हर्ष नाम की चीज़ इसमे
उबाल सी हो गए ,
आजकल के लोग
बड़े आलसी हो गए !
हाथों का काम ये
करते हैं मशीन से ,
जो हो जाता था एक से,
वे अब करते हैं तीन से
मानव में ऊर्जा की
अकाल सी हो गए !!
आजकल के लोग
बड़े आलसी हो गए !
मिलने को कौन जाता हैं ,
अब दुखियों से !
हाल – चाल पूछ लिया
जाता हैं फेसबुकयों से !!
कैसे सुलझाऊ रिश्तों को
ये तो एक जाल सी हो गए !
आजकल के लोग
बड़े आलसी हो गए !!
लेखक :- नीतीश निराला