शीर्षक:हे आसमान
हे आसमान तुम सुंदर लग रहे हो आज
उद्बोधन हे स्वेत रूप धारण किये हुए तुम
आसमान मन के शैशवकाल का आरम्भ मानो
आज स्वयं आसमां का अपने ही मन से हो मिलन
वैसे ही स्वेत वस्त्र धारण किये हो
जैसे किसी विशुद्ध आत्मा का हो संवर्द्धन
मिलन हो पवित्र आत्मा का आत्मा से साक्षात
आत्मज्ञान का संचार हो रहा हो सब तरफ
शांति और शीतलता मानो फैल रही हो सब और
नष्ट हो मूढ़ विषधर रूपी गुबार धूल के
प्रमुदित हो अंतर से बारिश की वो पहली बून्द
भीग भीग संसार मानो दे रहा हो बादलो को नेह
न रहे कोई असार मन मे गर्मी रूप में उमस रुप में
गरिमामयी जीवन का सफेद रंग लिए आसमां
अपनाकर सदाचार स्वच्छ सा पवित्रता का रूप लिए
मानव जीवन मानो क्षणभंगुर बादलो के समूह सा
अब देर न कर देर न कर आ बारिश तू बरस ले
आओ स्नेहमयी वृष्टि करें स्वयं को समर्पण करें
तन मन के उज्ज्वल भाव भरे जीवन मे आसमां बन
गीतों में रस भरें मानो बादल भरे हो आज बरसने को
आओ मिल आसमां को निहार हम मिलकर एक टक
स्वेत प्रेममयी स्नेह युक्त आसमां का नेह बर्षा रूप में
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद