शीर्षक:सप्तम नवरात्र
🙏🏻माँ दुर्गा का सातवां रूप ‘कालरात्रि🙏🏻’
नवरात्र के सातवें दिन दुर्गाजी के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा और अर्चना का विधान है। इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है। बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है। श्यामल रूप में माँ की कांति सुशोभित होती हैं।इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है।असुरों की संहारक रूप में माँ दिखायी गयी हैं। इनके तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं जिनमें एक में खड्ग अर्थात् तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ में अभयमुद्रा है और चौथे हाथ में वरमुद्रा है। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है। माँ कालरात्रि की पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है।आदिशक्ति देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी के इस रूप की पूजा करने से दुष्टों का विनाश होता है। मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। दुष्टों का नाश करने के लिए आदिशक्ति ने यह रूप धारण किया था। भक्तों के लिए माँ कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इस कारण माँ का नाम ‘शुभंकारी’ भी है। ऐसी मान्यता है कि माँ कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है, उसे अग्नि भय, जल भय, शत्रु भय, रात्रि भय आदि कभी नहीं होता।
माँ के इस रूप की अर्चना से सब पाप नाश होते है और सद्भुधि आती हैं।माँ जी की दिव्य दृष्टि हम सब पर सदैव बनी रहे यही माँ से आशीर्वाद रूप में मांगती हूँ।
एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद