शीर्षक:वक्त नहीं मिलता कभी
शीर्षक:वक्त नहीं मिलता कभी
अब छोटो को संस्कार देने का
ये कैसी विडंबना रख दी वक्त ने आज
या जीविकापार्जन में ही भूल गए हम
क्यो समाप्ति की कगार पर आज हमारे संस्कार
क्योंकि वक्त नहीं मिलता कभी…
समाप्त होने लगी अब नैतिकता धीरे धीरे
इंसान की इंसानियत हो रही लुप्त धीरे धीरे
आज पैसे की मार ने खडा किया बस धीरे धीरे
पता ही नही चला बजट बह चला धीरे धीरे
क्योंकि वक्त नहीं मिलता कभी…
एक दूसरे में कमियां बस टटोलने लगे हम
देखो कहाँ से कहाँ आज आकर खड़े हो गए
मिलकर करना होगा यत्न हम अलग कई हो गए
कपटता छोड़ पीछे देखना होगा फर मत कहना
कि वक्त नहीं मिलता कभी…
वक्त हमेशा ही रहा हमारे बुगुर्गो पर भी
वो बनाकर चले संयम जीवन मे
खोई नही उन्होंने संस्कृति सभ्यता अपनी
पर हमने तहरीर दी पैसो को सारी अपनी
औऱ कहा वक्त ही नही मिला
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद