शीर्षक:युवा वर्ग में नैतिक शिक्षा आज के परिवेश मे
शीर्षक:युवा वर्ग में नैतिक शिक्षा आज के परिवेश मे
नैतिकता मानव-मूल्यों की वह व्यवस्था है जो अधिक सुखमय जीवन के लिए हमारे व्यवहार को आकार देती है। नैतिकता की सहायता से हम ईमानदारी से जीवन जीकर हमारे सम्पर्क में आने वाले लोगों से विश्वास और मैत्री स्थापित करते हैं। नैतिकता सुख की कुंजी है
सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम, दयालुता, मैत्री आदि को नैतिक मूल्य कहा जाता है।सच्चाई को स्वतः साध्य मूल्य कहा जाता है यह अपने आप में ही मूल्यपूर्ण है।इसका प्रयोग साधन की भांति नहीं किया जाता, बल्कि यह स्वतः साध्य है। सभी विवादों में भी सत्य के अन्वेषण का प्रयास किया जाता है। सभी नैतिक मूल्यों का नैतिक आधार सत्य ही है। यद्यपि सत्य एक व्यापक दार्शनिक अवधारणा है लेकिन संक्षेप में इसे वस्तुस्थिति को ज्यों का त्यों कहना कहा जाता है। अर्थात् बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी वस्तुस्थिति को देखना, समझना और व्यक्त करने को ही सच्चाई कहते हैं।
मनुष्य में दयालुता नामक सदगुण भी विद्यमान होता है। मनुष्य में अन्यों के प्रति दयालुता का भाव होता है। प्रायः वे अन्यों को कठिनाई में देखते हुए उनकी सहायता का प्रयास करते हैं क्योंकि मनुष्य यह स्वीकार करता है कि इस प्रकार की समस्याएं व घटनाएं किसी के साथ भी हो सकती है इसलिए मनुष्य दयालुता के बोध के कारण ही एक दूसरे की सहायता का प्रयास करते हैं।प्रेम को सर्वोपरि मानव कहा गया है। मनुष्य प्रायः एक दूसरे से प्रेम करते हैं। प्रेम न केवल मानव जाति में विद्यमान होता है बल्कि मनुष्य में अन्य जीवों के प्रति भी प्रेमभाव विद्यमान होता है।
प्राचीन भारत में “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा पाई जाती है जिसका अभिप्राय है कि पूरी धरती ही एक परिवार के समान है और यहाँ सभी को एक दूसरे के साथ परस्पर प्रेमपर्वक रहना चाहिए। भारतीय संस्कृति की यह अवधारणा उसके सारतत्व ‘सह अस्तित्व’ पर आधारित है। इसे वर्तमान वैश्वीकरण से भी जोड़कर देखा जा सकता है जहाँ पूरा विश्व एक गाँव में परिणित हो गया है।
‘संस्कारों की सरस बेल हैं नैतिक शिक्षा
है स्नेहिल धारा का प्रवाह नैतिक शिक्षा
आदर्श स्थापित करती नैतिक शिक्षा
घर-संसार संवारती नैतिक शिक्षा”
नैतिक शिक्षा की आवश्यकता:-
नैतिक शिक्षा मनुष्य के जीवन में बहुत आवश्यक है। इसका आंरभ मनुष्य के बाल्यकाल से ही हो जाता है। सब पर दया करना, कभी झूठ नहीं बोलना, बड़ों का आदर करना, दुर्बलों को तंग न करना, चोरी न करना, हत्या जैसा कार्य न करना, सच बोलना, सबको अपने समान समझते हुए उनसे प्रेम करना, सबकी मदद करना, किसी की बुराई न करना आदि कार्य नैतिक शिक्षा या नैतिक मूल्य कहलाते हैं। सभी धर्मग्रंथों का उद्देश्य रहा है कि मनुष्य के अंदर नैतिक गुणों का विकास करना ताकि वह मानवता और स्वयं को सही रास्ते में ले जा सके। एक बच्चे को बहुत पहले ही घरवालों द्वारा नैतिक मूल्यों से अवगत करा दिया जाता है। जैसे-जैसे उसकी शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है। उसके मूल्यों में विस्तार होना आवश्यक हो जाता है। ये मूल्य उसे सिखाते हैं कि उसे समाज में, बड़ों के साथ, अपने मित्रों के साथ व अन्य लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। विद्यालय में किताबों में वर्णित कहानियों और महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से उसके मूल्यों को संवारा व निखारा जाता है। यदि एक देश का विद्यार्थी नैतिक मूल्यों से रहित होगा, तो उस देश का कभी विकास नहीं हो सकता। लेकिन विडंबना है कि यह नैतिक मूल्य हमारे जीवन से दूर होते जा रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। क्योंकि इनमें नैतिक शिक्षा का अभाव है। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए हम किसी भी हद तक गिर जाते हैं। ये इस बात का संकेत है कि समाज कि स्थिति कितनी हद तक गिर चुकी है। चोरी, डकैती, हत्याएँ, धोखा-धड़ी, जालसाज़ी, बेईमानी, झूठ, दूसरों और बड़ों का अनादर, गंदी आदतें नैतिक मूल्यों में आई कमी का परिणाम है। हमें चाहिए नैतिक शिक्षा के मूल्य को पहचाने और इसे अपने जीवन में विशेष स्थान दे। विद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा जरूरी कर देनीचाहिए।ताकि गिरते मूल्यों को समय रहते संभाला जा सके।आज के युवावर्ग को सचेत करने की आवश्यकता हैं ताकि हमारे नैतिक मूल्यों का हनन न हो।आओ आज मिलकर संकल्प ले कि हम नैतिक मूल्यों का पालन करेंगे और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी शिक्षित करेंगे।इसी संकल्प के साथ आपकी अपनी
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद