शीर्षक:फागुन की बयार
धुंध, कुहासा छट गया
सूरज भी चादर ओढ़ चला
शीत भी मानो रूठ गई
ठिठुरन भी थोड़ी ठिठक गई
सरसों पर पीले फूल खिले
पेडों पर पत्ते फूट चले
सूरज गर्मी दिखलाने लगा
सर्दी को दूर करने लगा
हिमपात धरा से पिंघलने लगा
सूरज जल्दी आने जो लगा
अंधेरे का साया घटने लगा
फागुन का मौसम आने लगा
मौसम में रंगत छाने लगी
होली का मौसम आने लगा
बचपन पिचकारी खरीदने लगा
युवा भी रंगों से महकने लगा
गुंजियो की खुशबू आने लगी
माँए भी कोथली सजाने लगी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद