शीर्षक:प्रतीक्षारत
❗️प्रतीक्षारत❗️
प्रतीक्षारत…!
थक जाती हैं आँखे पर
नही थकती प्रतीक्षा
अवचेतन में पड़ी यादें
नही रहने देती चैन से
मन भी रहता हैं विचलित
टटोलती हैं यादें क्षण क्षण
उन्ही बीते पलो को उसी में रहती हैं वो
प्रतीक्षारत…!
जीवित लगती हैं काया
पर मात्र स्वास लेने को
मर जाती हैं स्त्री प्रतीक्षारत
सांसों का आवरण सा ढक लेती हैं
पर होती हैं गहन यादों में मानो नग्न
खोल देती हैं दबी हुई स्मृतियां
अपने विचारों में यही सोच बस रहती हैं
प्रतीक्षारत…!
काश वो समझता गहराई तक
यही सोच होती हैं चेतनाओं में भ्रमित सी
मन मे छिपी हुई स्म्रतियों को चेतन करती
टटोलती हुई यादों की गुच्छियां सी
मानों यादों में उलझाव सा हो गया हो
अनुत्तरित रही यादें भी लेती हैं मानो करवट
और हो जाती हैं अनुत्तरित सी
प्रतीक्षारत…!