शीर्षक:प्यारा बचपन
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शीर्षक:प्यारा बचपन
देखो बचपन कितना अच्छा न्यारा प्यारा।
कितना खुश यहाँ होता बच्चा बच्चा सारा।।
बिल्कुल निर्भीक न कोई जिम्मेदारी होती।
न कोई सामाजिक बंधन न ही चिंता होती।।
न कोई विरोध नही कोई माया-मोह होती।
हँसता-खेलता बचपन मधुर मुस्कान होती।।
निर्मल बालमन बिल्कुल कोरा कागज होता।
छल-कपट का उसके पास स्थान नही होता।।
न जाति का भान न ही मजहब का ज्ञान।
न ऊंच-नीच मालूम नअमीरी-गरीबी का भान।।
बच्चा तो केवल वात्सल्य का भूखा होता।
कौन है अपना,कौन पराया ये ज्ञान न होता।।
परिवार-समाज सबका चहेता बच्चा होता।
सबके यहाँ आता-जाता सबका स्नेह पाता।।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद