शीर्षक:तब कहीं जाकर
💫तब कहीं जाकर💫
बात कर लेने मात्र से ही तो
मन मे दबी भावनाएं उखड़ने लगती हैं
मन पर बढ़ा हुआ भाव हल्का हो जाता हैं
मन में भड़कते उद्वेग विस्तार रूप ले लेते हैं
तक कहीं जाकर मन शांत होता हैं
अभिव्यक्ति से मानो उपचार सा हो जाता हैं
मानो किसी दुखते घाव पर मरहम लग जाता हैं
अपने भाव शांत रूप की और अग्रसर हो जाते हैं
अभिव्यक्ति मात्र से ही दर्द मानो उड़ जाते है
तक कहीं जाकर मन शांत होता हैं
दबे हुए भाव में को कुंठित करते है
व्यक्तित्व को अपने प्रहार से आहत करते है
स्वयं पर ही भरोसा मानो कम करते हैं
अनाभिव्यक्ति से ही तो कुंठाओं में घिरते हैं
तक कहीं जाकर मन शांत होता हैं
मन स्वयं के विचारों पर पश्चाताप करता है
कभी हास्य तो कभी रुदनावस्था देता है
दबे हुए भाव को व्यक्त करने से शांतचित्त होता हैं
मन अवचेतन की अवस्था से बाहर आता हैं
तक कहीं जाकर मन शांत होता हैं
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद