शीर्षक:जीवनगति
शीर्षक: जीवनगति
कितनी चलायमान हैं जीवनगति
क्षण क्षण चल रही हैं वापसी की और
वही जहाँ से शुरूआत हुई थी कभी
कितनी लयबद्धता से हम जीवन जी लेते हैं
प्रकृति के विधि विधान के साथ लौट जाने को
सुखद अभिसार लिए हम बढ़ रहे है अपनी राह
ठीक वैसे ही मानो दिन भर भानू भी थक कर
लौट रहा हो पश्चिम में वही से पुनः आगमन को
सूर्यास्त वही सिखाता हैं प्रतिदिन हमें कि
लौट जाना होगा पुनःआने के लिए
मानो शाम को पंछी भी लौट आते हैं अपने नीड में
पुनः नई उड़ान को अपने में समेट शक्ति संचार को
विभोर करता है प्रकृति का नियम जो हम
सभी के लिए समान ही होता हैं बस
सोच हमारी अस्थिर होती हैं क्षण क्षण प्रति क्षण
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद