शीर्षक:खण्ड-खण्ड पर अखण्ड
💤खण्ड- खण्ड पर अखण्ड💤
प्रीत तेरी अनंत स्वरूप
और फिर भी सभी के अनुरूप
नारी तू ही नारायणी रूप
प्रेम का महासागर समाए स्वयं के आगोश में
खण्ड- खण्ड पर अखण्ड स्वरूप में
लुटाती अपनी संतान पर लहरों सी प्रीत
टकराती अनेको तूफानों सी विकट परिस्थिति से
लहरों सी समेट लेती है सभी को अपने स्वरूप में
अग्नि समान नारी स्वयं जलती हैं अपनो के लिए
खण्ड- खण्ड पर अखण्ड स्वरूप में
चलती हैं बिन रुके अनेको बाधाओं को पार करती
ज्वालामुखी बन श लेती हैं सभी लपटों को
स्वयं घिर जाती हैं परिवार के लिए
अनेको रूपो में न जाने कैसे जी लेती हैं
खण्ड- खण्ड पर अखण्ड स्वरूप में
बेटी,पत्नी,बहन,माँ,सखी,आदि रूप लिए
ह्रदय कु विशालता प्रदर्शित करती हुई
स्नेह की ज्योत्स्ना लिए विलीन रहती हैं
सभी रूपो में किरदार लिए चलती हुई
खण्ड- खण्ड पर अखण्ड स्वरूप में
अंतिम पड़ाव तक रहती हैं पोषित रूप में
जन्म दर जन्म चलती हैं प्रीत की रीत लिए
अमित छाप छोड़ती हैं हर स्वरूप में
स्वयं बढ़ती हैं, चलती है फिर से आने को
खण्ड- खण्ड पर अखण्ड स्वरूप में
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद