शीर्षक:आशायित
‼️‼️आशायित‼️‼️
आशायित हूँ अभी भी
यादों की सिकुड़न लिए
अस्तित्व को समेटती सी
ढहते हुए यादों के मकां से
शायद टूटे ढेर से रख लूं समेट
यादे,वादे जो विलुप्त न हो जाये
टूटते सपनों की निंद्रा के मानिंद
ढहते हुए खंडहर यादों के
धूमिल से नजर आते हैं
देता है दस्तक ढहे खण्डहर से
शायद कोई कील ही मिल जाये
चुभन होती सी विगत यादों की
जंग लगी कील सी असहनीय पीड़ा
यादों की टीस मानो पस सी पीड़
रौंद दिया गया हो जैसे
यादों से भरा मकां मेरा
मेरी वो अनुमोल धरोहर
हो गई हो ज़मीदोज़ मलबे में
छिप सी गई हो सिकुड़न में पीड़ा
यादों की सिकुड़न में छिपी सी
आशायित हूँ अभी भी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद