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18 Oct 2022 · 2 min read

शीर्षक:अहसास

———अहसास———

मैं जैसे…
रख देती हूँ
फिर से उठाकर
तुम्हारे अनमोल अहसास
अतीत की दहलीज पर,
मैंने देखा हैं..
तुम में स्वयं को
तुम्हारी आँखों में स्वयं का विलय
आंसुओ से सींचती अपने को
कुछ तस्वीरे भी बयां करती हैं
मैने देखा हैं..
तुम्हारी हँसी में अपनी
हँसी को मिलाकर उस क्षण
जीवन प्रेम-क्षणिकाऐं,उभरती हुई
और उगती सी विरह वेदना
मैंने देखा हैं..
होठों पर मधुमास सी मुस्कान,
मैं उसमें अपने को मुस्काती सी
देखने का प्रयास मात्र करती
उसमें ही खुशी की अनुभूति स्पर्श करती
मैने देखा हैं..
तुम्हें सूरज की गति से चमकते हुए,
तुम में खुद को पाती रही चमक सी बन
अभी बाकी हैं गहन जैसे प्रेम प्रसंग
फूलों की टहनियों का महकना उन संग
मैने देखा हैं..
अब भी व्याप्त हैं तुम में अपना पन
तुम्हारे पास होने सा प्रतीत हुआ,
सच में चांद‌ ज़मीं पर आया सा लगता
सच में आ ही गया हैं वही प्रेम का पल
मैने देखा हैं..
शेष हैं तुम्हारा मधुर मिलन हो जाना
शेष हैं मेरा तुम में सिमट जाना
एक पूर्ण मास के समान हो जाना,और
तारीखों का जल्दी घट जाना कलैंडर से
मैंने देखा हैं..
तुम्हें आकाश से ऊँचा बने देखना और फिर
मैं भी भरना चाहती हूँ ऊँची उड़ान
तुम्हारे पास आ जाने के लिए,
तुम्हें पास से छूने के,सुखद अहसास को लिए
मैंने देखा हैं..
पर जब-जब भी तुम पास होते हो
इस तरह हो जाते हो मुझ में विलीन से
साँसों में बस जाते हो महक से मलय पवन से
तुम्हारी खुशबू में मैं पल पल
महकती रहना चाहती हूँ तुम संग

डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद

Language: Hindi
1 Like · 117 Views
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