शीत
शीत यौवन की डग चला है
सर्द हवा का प्रलोभन बढ़ा है
इधर उधर वृद्ध जनों को चूमे
कैद कर घर में अपनों को भूले
हीटर , अलाव की याद दिलाती
सर्दी दूर कर गर्मी को है जगाती
हर कोई रजाई की शरण में है
सर्द कम हो बस यही रटन है
सूर्यदेव हो गये है अब नदारद
भास हमारा रहा नहीं शायद
एक झलक पाने को ताके नभ
पर न दिखाई न दे सूर्य देव अब