शीत
शीत
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ऋतु जाड़े में लगे है , बहुत प्यारी आग
रोटी हो बाजरे की , मिले चने का साग
मैथी बथुआ मिला कर , ले आटे को माड़
सर्द दूर हो तभी ही ,नहीं कांपते हाड़
हीटर अलाव जला कर , बैठ जाये आप
करे नहीं मन जरा भी , दूर तनिक हो ताप
खाकर तिल के लड्डू हम ,खूब मनाये मौज
मूंगफली संग गजक भी , होगी बल्ले रोज
लगे रजाई सखा सी , स्वेटर अपने मीत
शॉल ढके जब देह को ,मिटे तभी यह शीत