शीतल हवा
बर्फ़ की सफेद ओस, ओढ़कर हवा चली।
आग के जले अलाव, धुंध के उठे गुबार ।।
शांत सुंदरी सुबह, विभावरी विलासिनी।
बाग में वसन्त सम,फूल की खिली बहार।।
इंदु सा दमक रहा , वितान का स्वरूप भी ।
कांपता शरीर -हाड़ , प्राण भेदता तुषार ।।
श्यामली धरा सुदर्श ,सूर्य की सुतीक्ष्ण चाल ।
भोर का हुलास मौन, रिक्त दीखती कछार।।
-जगदीश शर्मा.