” शीतल कूलर
लोहा, प्लास्टिक दोनों से बनता
गर्मी में सबकी तपन बुझाता
पंडूबी संग शीत लहर चलाता
कहते हैं मुझे सब शीतल कूलर,
पंखे में तापमान जब बढ़ जाता
लू लगे इसलिए तूं भाग कर आता
तपती दोपहरी में सभी पुकारें
हाय री कूलर, हाय री कूलर,
धर धर धर आवाज कर चलता
निशा में गहरी तुम्हें नींद दिलाता
ईंट, पत्थर, चौका अनेकों स्टैंड
ऐसा हूं जग निराला मैं कूलर,
छोटे बड़े सब प्रकार का मिल जाता
बाहर भीतर हर जगह चल जाता
बिजली की थोड़ी बचत कर जाता
आम आदमी की पहूंच का मैं कूलर।
Dr.Meenu Poonia