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17 May 2018 · 1 min read

शिक़वा नहीं शिकायत है

वो बैठे मेरे आशियाँ आकर,
खिला जैसे गुल चमन में है,
बड़े शिद्दत से सज़ाया है शामियाने को मैंने,
यूँ ऐसे नफरतों से ना देखिये मुझे ।।

में कतरा बनकर बहता रहा हूँ,
बहता ही रहुँगा हरदम,
याद में तेरी ओ सनम,
चाहे मिले न महफ़िल ,
जिसके हो तुम मेहमाँ ।।

छण वो भूल सकता नहीं,
भुला दे लाख तू चाहे ,
याद वो पल आज भी हैं मुझको,
मुकरता नहीं था तू बातों से अपनी ,
हुआ क्या तुझको है ज़ालिम ।।

कहा था वक्त तू देगा मुझको,
क्यूँ है अब बेरुख़ी मुझसे,
मुझे लौटा दे वो मेरा गुजरा हुआ पल,
या फ़िर दे आज़ादी मुझको,
तू अपने झूठे आलिंगन से ।।

यूँ में अब सह नहीं सकता,
बिन तेरे भी रह नहीं सकता,
मुझे क्यूँ बेराह है छोड़ा ,
जो दुःख दिए हैं मुझको,
लगे हैं क्यों तुझे थोड़ा ।।

लगा ले तू गले मुझको,
या मिला दे मौत के गले से,
रहूँ न मैं यूँ तन्हा बिन तेरे ,
मिलेगी आज़ादी मुझको ,
या तू आज़ाद हो जाएगा ,
जब लगा लूंगा मौत को गले से ,
इस चमन में तू बेपरबाह तू रह पायेगा ।।

इस जहाँ से चले जाने के बाद ,
तू बेपरवाह रह लेना ,
बस यही इच्छा है मेरी,
तू आना मेरे आख़िरी सफ़र में,
जहाँ पर न कोई शिक़वा मुझे होगा,
न तब कोई “आघात” वहाँ होगा ।।

®©आर एस “आघात”©®
8475001921

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