शिशु – – –
शिशु – – –
हे जग के पालनहार
जन्म देकर तू क्या किया,
स्नेह सुधा गंग धार,
बिन बताए मुझसे छीन लिया,
मिलना था, माँ का आंचर
नंगी धरती पर तू सुला दिया,
हे जग के पालनहार
जन्म देकर तू क्या किया ।
किस बज्र छाती से टपके क्षीर,
व्याकुल शिशु का देख अथीर नीर,
क्रंदित होठ, व्यथित भरी नैना
चुस अंगुठा, क्षुधा न चैना,
कुन्ती बन जल धारा में बहा दिया ।
हे जग के पालनहार
जन्म देकर तू क्या किया ।
उमा बाल हृदय को समझे कौन,
है जब शिशु प्रति ममता ही मौन,
सरस ममतामयी मां कहाँ,
भटक रहा नयनाश्रु यहाँ वहाँ
बना दीपक, लो ही तू बुझा दिया,
हे जग के पालनहार
जन्म देकर तू क्या किया ।
—उमा झा