शिव
डम डम डमरू का
अनहद तांडव का
सृष्टि और विनाश में
शिव ही साधक है
गरल सुधा जो पीए
जटा में गंग वो धारे
शुभ और अशुभ में
शिव ही बाधक है
दुख में जब हो प्राणी
आर पार कुछ न हो
केवल गम सागर हो
शिव ही हारक है
लिया नहीं है जिसने
नाम उस त्रिकाल का
तिल तिल मर जीए
शिव ही मारक है
अर्द्ध नारीश्वर रूप
दिखता मेरा स्वरूप
जीवन आधार तुम
शिव ही पालक है
गौरा करे जब प्रीत
काल बने तब मीत
ब्याह कर बने जोड़ी
शिव ही धारक है