शिव स्तुति
भष्म से रमी सुदेह रूप अति भयंकरा।
कोटि-कोटि आपको नमस्तु देव शंकरा।
शशि ललाट शोभितम गले भुजंग माल है।
गंग शीश पे तरंग छेंड़ती विशाल है।
ब्याघ्र चर्म पर विराजमान वृक्ष वट तले।
जब खुले त्रिकाल दृष्टि नेत्र तीसरा जले।
क्रोध में हो आप तो ये डोलती वसुंधरा।
कोटि-कोटि आपको नमस्तु देव शंकरा।
आप हो दयानिधान आप आदि अंत हो।
सृष्टि का विधान आप ही सदा अनन्त हो।
नित्यकर्म से सदा जो पाठ आपका करे।
वो रहे सुखी सदैव कष्ट आपने हरे।
लीजिए शरण मुझे कृपा करो दिगम्बरा।
कोटि-कोटि आपको नमस्तु देव शंकरा।
अभिनव मिश्र अदम्य