शिव शम्भु
(मनहरण घनाक्षरी)
आप शिव शम्भु भोले,
जग हर हर बोले,
निवास कैलास करे,
मेरी गली आओ ना।
दूध दही नहीं सही,
बेल पत्र धूल रही,
कैसे करूँ पूजा तेरी,
राय तो बताओ ना।
बेर विष भरे हुए,
सर्प भी हैं डरे हुए,
बढ़ रहा नर विष,
धरा से हटाओ ना।
मानवता मर रही,
तेज धूप बढ़ रही,
खोल केश सोम ठंडी,
चाँदनी गिराओ ना।
नारी जग पूजी जाती,
मर्यादा की है ये थाती,
भेष लघु वस्त्र वाला,
गौरी को दिखाओ ना।
ताप कहीं सूखा कहीं,
रिश्तों में है राड़ रही,
धरा पाप धोये गंगा,
जटा से बहाओ ना।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,