शिव – शक्ति से,
ना राजा की बेटी जनक दुलारी हूँ।
ना पति परमेश्वर पुजारिन हूँ।
कैसे कहूँ शिव मैं तुम ही तरह , भोली-भाली विष पीने वाली हूँ।
युगों से सैकड़ों दंश सहे , कभी अहिल्या वन पत्थर।
आज भी अस्तित्व के लिए संधर्ष मय ,नारी ,
जगत्मातेश्वरी से कहती हूँ ।
मेरी शक्ति कहाँ क्षीण हुई ।
जब पोषण तुम्हारी है।
भले में जीवधारी ,संसारी।
भले लालन-पालन,
माध्यम माँ- बाँप करते हैं
देह निर्माण का काम करते हैं
पर शिव – शक्ति ये चेतना तो तुम्हारी है।
हम देहधारी हैं। इसलिए ललक तुम्हारी हैं।
बहुत मिलने पर भी ,अन्तकरण उदास हमारी है ।
कहते हैं संत इस शरीर में,कुटस्थ में वास करते तुम ।
ये भी सच्चे संत की है, मेरी नहीं
बस कुटस्थ दर्शन लायक बना दें I
अपने पास की शक्ति
भक्ति जगा दें । कितनी छली जाएगी , नारी
आत्ममुग्धा बन खुद अपनी ही आत्मा द्वारा छली जाती हूँ । मर्दों के बहकावें में आकर फेंकी हुई वस्तु रूप जी जाती हूँ।
मुझे इंसान लायक बनने की क्षमता दें।
इसलिए कहती हूँ
ना राजा की बेटी जनक दुलारी हूँ।
ना पति परमेश्वर पुजारिन हूँ |
कैसे कहूँ शिव मैं तुम ही तरह भोली – भाली विष पीने वाली हूँ।
हालात अच्छी नहीं है।
जो आपसे छिपी नहीं है।
कलियुग की गुणगान है ।
हर जगह ये बखान है नर – नारी दोनों हैरान है।
सब तरह से परेशान हैं।
दे दो हमको ज्ञान
कर दो विश्व कल्याण |
ये विनती हमारी,
आपको लाखों प्रणाम
_ डॉ . सीमा कुमारी , बिहार (भागलपुर ) दिनांक- 17-1-022