शिव शंभू
शिव शंभू
शिव ही जग के आदि हैं
शिव ही जग के अन्त,
कोई ना जाना इनको,
साधु और ना सन्त।
पर्वत पर बैठे ध्यान मग्न
आंख मूंद कर रहे तपस्या सघ्न।
शिव रोक न सके क.पा अपनी,
देखने लगे मानवता की और
करने लगे सब पर कृपा अपनी।
भोलेबाबा का रूप निराला है
गले में डाले नाग
और हाथ डमरू वाला है।
शंकर गौरा साथ गणपति हे विराजे,
मूषक की करते सवारी
गले मोतियन माला साजे।
समुद्र मंथन से विष निकला,
संसार को ताप से बचाने को
किया कंठ में धारण—
नीलकंठ कहलाए!
महाशिव रात्रि का पर्व —
तब से है शिव रात्रि कहलाए!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,