शिवरात्रि
शिवरात्रि
बहे गंगा जटाओं से ,
सजे चंदा जटाओं पे।
रखें त्रयशूल पाणी में,
बसें श्री राम वाणी में
विराजे तुंग पर्वत पर,
बनाया है वहीं पर घर।
शिवा सेवा निरत रहतीं,
नमः शिव-शिव सदा कहतीं।
यहां दांपत्य न्यारा है,
अटल सौभाग्य प्यारा है
सुअन दोनों खड़े आगे ,
सभी के भाग हैं जागे.
वहीं नंदी खड़े तत्पर,
लगाएं दृष्टि भोले पर।
सभी गण हाथ जोड़े हैं,
सभी बस प्रेम ओढ़े हैं।
जहां संयम नियम होंगे,
वहीं सब प्रेममय होंगे।
कृपा शिव की जहां होगी,
वहीं शिव रात्रि भी होगी
इंदु पाराशर