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12 Mar 2021 · 1 min read

शिवरात्रि घनाक्षरी

हिमशैल घर नाथ, लेकर बारात साथ,
नंदी पे सवार होके, चला महाकाल है।
जटा जूट सिर गंग, तन लिपटे भुजंग,
हाथ में त्रिशूल सोहे, अर्ध चन्द्र भाल है।
भंग के नशे में चंग, बाज रहे है मृदंग,
नाच रहे भूत-प्रेत,रूप विकराल है।
औघड़ सा देख रूप, चिंतित हुए हैं भूप,
देख के बारात आज, करते मलाल है।

अदम्य

1 Like · 1 Comment · 374 Views
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