शिवजी:सावन और लौकिक रूप
शिवजी::सावन और लौकिक रूप
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शिवजी:के भ्रम और वैज्ञानिकता पर पिछले लिख की अगली कड़ी में शिवजी पृथ्वी लोक में क्यों और कैसे रहते हैं!! कांवड़ का महत्व।पढिये और जानिये!!
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सावन,भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक ये चातुर्मास के महीने बहुत पवित्र माने जाते हैं।सावन मास शिवजी को समर्पित है;लोग पैदल चल कर पवित्र नदियों का जल अपने घर के निकट शिवालयों में लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।वैज्ञानिक कारण:वर्ष में एक बार पैदल पर्यटन जिसके आज के युवा अभ्यासरत नहीं हैं परंतु फिर भी आस्था के चलते वे निकटतम अथवा दूरस्थ नदी तक जाके और कांवड़ मे बैठा कर बिना नीचे रखे उसे वापिस लेकर आते हैं।क्यों ?? आप चलने से न केवल आप वर्ष भर स्वस्थ रहते हैं; अपितु शिवजी की भाँति कुछ दिन घर की चिंता से दूर अपनी मित्र मंडली के संग भक्ति में डूब कर; पूरी मस्ती में जाके हैं।न केवल पवित्र नगरी बल्कि रास्ते में पड़ने वाले सभी नगरों का भी पर्यटन और व्यापार बढ़ता है।
दूसरा प्रमुख कारण है सरीसृप और दूसरे जंगली जानवरों से मन का भय दूर करना।आज तो आवागमन के सुरक्षित और तीव्र गति के साधन मौजूद हैं परंतु केवल तालीस पचास वर्ष पूर्व ही बसे एक रूट पर दो चार ही मिलती थीं ।तो सोचिये कितना कठिन रहता होगा उन दिनों रास्ता तय करना।शिवजी गले में सर्प धारण करते हैं अत: रास्ते में मिलने वाले सर्पों को मारना नहीं है।यह परंपरा और आस्था है कि यदि रास्ते में कोई सर्प मिल जाये तो उसे पहले राह दे दो फिर आप आगे बढ़ो ।
तीसरा है नंदी की पूजा करना अर्थात बैल को सम्मान देना।आपने हर शिवालय के सामने ‘नंदी जी’ बैठी मुद्रा में मिलते हैं।भक्त जन अपनी इच्छा उनके कान में कहते हैं और फिर शिवालय में प्रवेश करते हैं।गाय की को सब पूजा करते हैं क्योंकि वे गाय माता है।उनका दूध माता के समान पोषक होता है।गोमूत्र विभिन्न रोगों के लिये प्रयोग में लाया जाता है यहां तक कि कैमोथैरेपी में और रैडिएशन के दूष्प्रभावों को कम और यहां तक समाप्त कर देता है।गाय के गोबर को जलाने से प्रदूषण और जीवाणु दूर भागते हैं और उसकी राख से बर्तन साफ़ करने से जीवाणुमुक्त तो होते हैं बल्कि आज के विम साबुन से अधिक चमकदार होते हैं।गोबर की राख को पानी में डालने से पानी दोषमुक्त के साथ ही अल्कलाईन हो जाता है जिससे शरीर रोगमुक्त रखने में सफलता मिलती है।इसमें नंदी का क्या काम? गोवंश का संवर्द्धन और आज भी ग़रीब का ट्रैक्टर है नंदी।खेत जोतना; बैलगाड़ी खींचना सारे मेहनत के काम को नंदी की ज़िम्मेवारी होती है।
चंद्रमा जो शिवजी के शिरोधार्य है शीतलता का रूप है।मन को नियंत्रित करता है।गुरुत्वाकर्षण बल से सागर जल और ज्वार भाटा तक नियंत्रित होता है।आपका नामकरण तक चंद्र राशि के अनुसार होता है।यदि आप मन को नियंत्रित रखते हैं तो आपका जीवन भी संतुलित रहता है।अंतिम तथ्य है विष को कंठ में धारण करना। इसका वैज्ञानिक तथ्य है कि आपकी जो मस्तिष्क में विष भरा है वह वहीं कंठ तक रहे और वह जिव्हा तक न आ जाये और परिवार और समाज को विषाक्त करे।इसलिये शिव संतुलन एवं सौम्यता के अद्भुद प्रतीक हैं।
अब देखते हैं शिवजी का बाघंबर धारण करना और हिमालय पर वास करना।बाघंबर धारण कि किस प्रकार प्रकृति का सदुपयोग करना है।मरे जानवर की चमड़ी धारण करना अथवा बिछौना बनाना इसी का प्रतीक है।हिमालय जैसा ध्यान और तप करने योग्य स्थल पृथ्वी पर और कहीं नहीं।प्रकृति के निकटतम दर्शन करने हों तो हिमालय जैसा कोई स्थान नहीं।जो विषधर को अपना बना सकता हो वह कितना संयम और धैर्य धारण करता होगा।शिव का लौकिक रूप भी जानिये और आप भी उनसे प्रेरणा प्राप्त करें ।
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राजेश’ललित’