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17 Oct 2020 · 1 min read

शिलालेख

मैं अगर थोड़ी मजहबी नहीं होती
तो अपनी कब्र पर
एक पत्थर लगवाती
शिलालेख जैसा कुछ
और उनसब के नाम भी
जिनसे मैं प्रेम करती थी
और बदले में बस चाहती थी
प्रेम, अपनापन स्नेह
पर कभी छली गयी
कभी दुत्कार दी गयी
और छोड़ दी गयी
ज़हन के उन अंधेरो में
जिन्होंने मेरी रूह में
भर दी स्याही
और मेरे मन की कोठरी
में लगे हुए उम्मीदों के
रोशनदान भर दिए
ख्वाबों के टूटे टुकड़ों से
मेरी हर मुस्कान जो
दिल से तो नही उठी
पर होंटो पर
चीख चीख कर
दम तोड़ती गयी
हर मुस्कुराहट का हिसाब,
हर आंसू के दाग
हर घाव की टीस
उन पत्थरो पर उकेरवाती
अगर मैं थोड़ी धार्मिक न होती
और माफ करना
मेरी फ़ितरत में न होता

Language: Hindi
9 Likes · 4 Comments · 532 Views
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