शिक्षा
जीवन के घने अंधेरों में
मुश्किल पथ के हर फेरों में
हार-जीत की जब होती समीक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
शिक्षा ,केवल अक्षर का ज्ञान नहीं
है ग्रन्थों का बस सन्धान नहीं
जीवन मूल्य जो बतला दे
है असली बस ज्ञान वही
मन दुर्बल होता है जब
और समय ले जब कठिन परीक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
क्या है गलती ,क्या है भूल
क्या समाज के है अनुकूल
ज्ञान किसी से मिल सकता है
एक्लव्य बनो,न ढूंढो गुरुकुल
विजय पताका फहराने की
जब मन में हो कभी भी इक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
ना महलों की ये अनुयायी
जिसने चाही उसने पायी
भूख गरीबी से लड़ने की
कला इसी ने सिखलायी
जब असफल हो यत्न सभी
खण्डित हो मन की प्रबल तितिक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
ना विक्रीत ना तोली जाए
ना गठरी बांध के ढो ली जाए
जितना बाँटे जो इसको
उससे उतनी बोली जाए
आलोक जगाने की तम में
उठ आये जो कभी सदिक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
सत का यह राह दिखाती है
मानव को मनुज बनाती है
जाती धर्म से ऊपर उठ के
यह जीना सिखलाती है
राष्ट्र धर्म की रक्षा को
करती हो जब धरती मात प्रतीक्षा
जीवन रव तब बन जाती है शिक्षा
देवेश कुमार पाण्डेय
मौलिक,स्वरचित