शिक्षा संस्थाओं को चलाने की स्वतंत्रता का प्रश्न और हिंदू समाज
शिक्षा संस्थाओं को चलाने की स्वतंत्रता का प्रश्न और हिंदू समाज
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समय आ चुका है जब हिंदुओं को एकजुट होकर इस बात की मांग करनी चाहिए कि उन्हें भी उनके द्वारा स्थापित शिक्षा संस्थाओं के संचालन का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जो गैर हिंदुओं को उपलब्ध है।
वर्तमान समय में हिंदुओं द्वारा स्थापित शिक्षा संस्थाओं के संबंध में नौकरशाही ने उत्पीड़नवादी रवैया अख्तियार किया हुआ है । न केवल मकड़ी की तरह नियमों का जाल बुनकर हिंदुओं की शिक्षा संस्थाओं के अधिकारों का अपहरण कर लिया जाता है अपितु पूरी तरह उनकी स्वतंत्रता को समाप्त करके एक प्रकार से नौकरशाही का साम्राज्य स्थापित कर दिया जाता है ।
हिंदुओं की शिक्षा संस्थाओं का इस प्रकार से उत्पीड़न हिंदुओं के विकास में बाधक है। आज अगर कुछ हिंदू स्कूल-कॉलेज खोलने की सोचते हैं तब उनके सामने यह प्रश्न उपस्थित हो जाता है कि वह विद्यालय तो खोल देंगे लेकिन उसके चलाने के अधिकार से कभी भी सरकार और सरकारी-तंत्र उन्हें वंचित कर सकता है । इस नीति से हिंदू समाज के भीतर जो लोग सद्भावनाओं के साथ विद्यालय खोलने में रुचि रखते हैं उन्हें काफी हतोत्साहित होना पड़ रहा है । इस स्थिति को बदला जाना चाहिए। मगर यह काम कैसे हो ?
समाज में हिंदुत्व की दृष्टि से जागरूक व्यक्ति और संस्थाएं एक मंच पर इकट्ठा हों तथा जन सभाओं के माध्यम से अपनी बात सार्वजनिक मंचों पर पहुंचाएं तो लक्ष्य की प्राप्ति असंभव नहीं है । अन्यायपूर्ण व्यवस्था का विरोध करना सब प्रकार से उचित है।
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रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451