#शिक्षा व चिकित्सा
#नमन मंच
#दिनांक २०/०९/२०२४
#विषय शिक्षा और चिकित्सा
#शीर्षक देश की विषम परिस्थितियों पर एक नजर
🙏राधे राधे भाई बहनों🙏
हर रोज हम किसी ने किसी सामाजिक व आध्यात्मिक विषयों को लेकर या मुद्दों को लेकर चर्चा करते हैं, आज भी एक प्रश्न जो मेरे मन में उठा है उस पीड़ा को मैं आपके सामने रखना चाहता हूं, आप सब आत्मज्ञानी है शायद इसको गंभीरता से लेंगे और इस पीड़ा का या इस समस्या का कुछ निवारण करोगे ऐसी मुझे उम्मीद है !
आज का विषय है “शिक्षा और चिकित्सा”
शिक्षा और चिकित्सा जगत के कर्मवीरों के मानसिक दिवालियेपन पर समाज व सरकारी तंत्र का ध्यान आकर्षित करवाना !
आज इस देश के हर घर परिवार में सबसे बड़ी चुनौती अगर है तो वो बच्चों को अच्छी एजुकेशन दिलाने की, और घर का कोई सदस्य गंभीर बीमारी से जूझ रहा है तो उसके लिए अच्छे इलाज की जरूरत है !
आज इस देश में सबसे ज्यादा लूट शिक्षा और चिकित्सा में ही हो रही है, जिस पर ना तो किसी धर्म के ठेकेदारों की नजर है, और ना ही शासन व्यवस्था की, जिसके चलते ये विभाग अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र है !
इंसान को इलाज के द्वारा नई जिंदगी देने के लिए हम भगवान के बाद डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते हैं, लेकिन उनकी संवेदनाएं खत्म हो चुकी है, मजबूर इंसानों को लूटना उन्होंने अपना बिजनेस बना लिया है !
उसी प्रकार शिक्षा के मंदिर में बच्चों को शिक्षा देने वाले शिक्षकों को हम गुरु के रूप में पूजते हैं, लेकिन शिक्षा का द्वार भी अब बनियों की दुकान बन चुकी है, जिस प्रकार महाजन अपनी वस्तु की सही कीमत नहीं मिलने तक आपको वह वस्तु नहीं देगा भले ही आप कितने ही मजबूर क्यों ना हो, उसी प्रकार शिक्षक भी अपनी बराबर फीस ना मिलने पर बच्चों के साथ वही व्यवहार करने लग गए हैं !
“व्यक्तिगत नैतिकता”
अब यहां पर समाज चाहे कोई भी हो देश हित की भावना को सर्वोपरि समझकर वसुदेव कुटुंबकम की भावना को सर्वोपरि मानते हुए समाज में जागरूकता लाने का बीड़ा उठाएं, हम अपनी समाज के सामाजिक कार्यकर्ता या राजनेताओं की या हमारे धर्म के देवी देवताओं की ऊंची ऊंची प्रतिमाओं में जितना धन खर्च करते हैं, उसी धन को हम देश की गरीबी को मिटाने में, शिक्षा और चिकित्सा में खर्च करें तो शायद हम इस देश को और आगे बढ़ा सकते हैं !
कितना अच्छा हो अगर हर समाज के जागरूक लोग मंदिर मस्जिद के नाम पर झगड़ने के बजाएं अपने अहंकार को दूर रख कर भंडारे और जलसे निकालने की बजाए शिक्षा और चिकित्सा के नाम पर चंदा इकट्ठा करें और बच्चों और बीमार व्यक्तियों को मुफ्त में शिक्षा और चिकित्सा उपलब्ध कराएं, अब यहां पर प्रश्न यह खड़ा होता है इतने बड़े देश में हम किस-किस का ध्यान रखें, अपने आस-पड़ोस मोहल्ले मैं छोटी टीम बनाकर भी हम अपनों का भला करें या सहायता करें यह भी बड़ा नेक कार्य है !
“डॉक्टर व शिक्षक की मजबूरी”
यह डॉक्टर और शिक्षक भी हमारे समाज से ही निकलते हैं, उनकी समस्याओं पर गौर करना भी हमारा फर्ज है !
अब यहां पर एक बात और गौर करने वाली है, जो डॉक्टर या जो शिक्षक जिसने अपनी डिग्री में लाखों रुपए खर्च किए हैं, आज कल एजुकेशन में एडमिशन के लिए लाखों रुपए का डोनेशन देना पड़ता है और यह बीमारी बहुत बड़ी हो चुकी है, जो कि बड़े-बड़े कार्पोरेट घराने इन कॉलेजों को चलाते हैं, उन्होंने अपना बिजनेस बना रखा है जिस पर सरकारी तंत्र का कोई अंकुश नहीं होता,
बल्कि सरकार सरकारी तंत्र के कुछ राजनेता भी उसमें सम्मिलित होते हैं, हमें किसी से लड़ना नहीं है, बस मेरी यह सोच है कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से करें तो भी बहुत सारी समस्याएं हल कर सकते हैं, जैसे कोई टैलेंटेड बच्चा है फीस देने में नाकाम है उसकी मदद में कुछ सामाजिक संस्थानों से उसको आगे बढ़ाने में सहायता दिला दे यह भी बहुत बड़ी समाज सेवा है, ऐसी बहुत सारी समस्याएं हैं, जिसे हम नैतिकता और ईमानदारी के बलबूते पर कर सकते हैं, और यह नैतिकता और ईमानदारी हमें शिक्षा के मंदिर से और हमारे बड़े बुजुर्गों से ही मिल सकती है !
पर क्या करें आजकल नैतिकता और ईमानदारी का तो कहीं नामोनिशान भी नहीं रहा, अब ये शब्द खाली किताबों की शोभा बन कर रह गये है !
आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर किसी विषय को लेकर हम चिंतन करेंगे !
मेरे इन विचारों से आपकी भावनाएं आहत होती है तो में क्षमा चाहता हूं !
🙏राम राम जी🙏
स्वरचित लेखक
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान
shyamkhatik363@gmail.com