शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्यात्मक आलोचना,
*एक अनपढ़ को अक्षर ज्ञान देकर
अक्षर जोड़ने वा वाक्य पढ़ना तो सिखाया जा सकता है,
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विवेक ज्ञान जागृति
साक्षर को अनपढ़ से ही सिखने पड़ते हैं,
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समाज गवाह है,
सामाजिक फैसले,
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कचहरी के पढे-लिखे
न्यायाधीश उन्हें सौंपते हैं,
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शिक्षक व्यर्थ ही बहम में जी रहा है कि
उसके शिष्य ने IAS की परीक्षा पास की है,
उन्नीस बच्चे जो फेल हुए
वे भी तो उसी कक्षा के विद्यार्थी हैं,
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शिक्षक और गुरु भ्रामक शब्द बन बैठा है,
एक मुल्क में या कक्षा में या एक स्कूल में
अंधकार दूर करने के लिए नहीं,
सिर्फ आजीविका कमाने के सूत्र बेचे जाते है,
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आपकी अंतस चेतना आपकी,
सहज,सतत आपकी अखंड ज्योति है
जो कि सच में मार्गदर्शक है,
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अप्प दीपो भव:का संदेश !
उसी अंतस चैतन्य को समर्पित
कबीर साहेब के दोहे :-
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कर्ता करे न कर सके,गुरु किए सब होत,
सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय,
सात समुद्र मसि करुं,लेखनी करुं सब वनराय सब धरती कागज करुं गुरु गुण लिखे न जाये
आदि-आदि उसी की महीमा की चर्चा है,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा).