शिक्षा का स्तर
अब तक साक्षरता दर को ही शिक्षा का पैमाना समझा गया,
इसलिए हर बार इंसानियत को शर्मशार किया गया,
पढ़ें लिखों ने भी यहां जानवर से बदतर व्यवहार किया,
किताबी भाषा को सीखा पर किताब से कोई ज्ञान न लिया,
जिस शिक्षा में डिग्री और अंको को अब तक ज्यादा महत्व दिया,
उसी शिक्षा ने हर बार हमको गुनहगार साबित किया,
आज तक समाज में शिक्षा को नौकरी का साधन माना गया,
इसलिए समाज में इंसा नहीं नौकरों का बोलबाला हुआ,
अमीरी गरीबी देखकर जहां शिक्षा का स्तर तय होता,
उसी समाज में इंसानियत की जगह पैसों का बोलबाला होता,
हुई आज तक कई समितियां करने को इसमें कई सुधार,
पर खानापूर्ति के जरिए असल मुद्दों को दबाया गया हर बार,
गिराया हमने शिक्षा का स्तर बनाकर इसको हर बार व्यापार,
इसलिए समाज में वस्तु का नहीं इंसा का सौदा होता हर बार