*शिक्षा और आधुनिकता *
भारत वह विशाल भूखंड जहां की अति प्राचीन मान्यताएं एवं परंपराएं।
उत्तर, दक्षिण ,पूरब, पश्चिम ,दसों दिशाओं का इतिहास उठाकर देखें ,तो पाते हैं कि शिक्षा संस्कृति व सभ्यता में हमारा यह राष्ट्र अपनी विशिष्ट पहचान दुनिया के सामने प्रस्तुत करता रहा है।
वर्तमान में भी देश नवनीत प्रयोगों के साथ अपनी छाप छोड़ता जा रहा है ।किसी भी राष्ट्र के उत्थान में शिक्षा का उतना ही महत्व है ,जितना कोई भी शरीर में धड़कन का।
आज चकाचौंध का नया स्वरूप हमारे समक्ष बाहें ताने खड़ा है। शिक्षा के नव नव संस्थान समाज में ऐसे पनपते जा रहे हैं, मानो अगर वह नहीं होंगे तो देश रसातल में चला जाएगा।
संस्कृति को त्यागे बिना भी आधुनिक शिक्षा को अंगीकार किया जा सकता है ,पर उसके लिए योजना एवं क्रियान्वयन का खाका खींचना जरूरी है।
भाषा संवाद एवं भावनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम है ।आज विश्व अपनी अपनी स्थानीय भाषा को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है ।
कुछ देश जिन्होंने अपनी मूल भाषा को नहीं त्यागा वह भी आधुनिकता की दौड़ में अपने आप को खड़ा पा रहे हैं ।
भारत ग्रामों का देश गरीबी बेकारी एवं अन्य समस्याएं घर-घर पैर पसार रही है।
शिक्षा का मूल स्वरूप क्या हो? पुस्तक ज्ञान ही क्या आधुनिकता की पहचान हो सकती है ?गांव का काश्तकार जिसके सामने तथाकथित शिक्षा के पुरोधा अपना मकड़जाल लेकर पहुंचता है
भोला भाला भारतीय जनमानस उसमें फसता है कि दो 4 वर्ष पश्चात जब उसे ज्ञात होता है कि मेरे द्वारा शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च का उत्तम पारितोषिक प्राप्त नहीं हो रहा है ।
तब या तो वह अपने शिशु को शिक्षा के आलय से हटा लेता है जहां के लिए उसने उच्च सपने सजाए थे।
आखिर उसे क्या मिला ?संस्थान ने अपना कारोबार चलाया गरीब उसमें नाहक पिसाया।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि शिक्षा के समग्र पुरोधाउस घर परिवार को कुंठित कर रहे हैं या नहीं?
शिक्षा व जो व्यक्ति को रोजगार करने या पाने का हुनर सिखाए। यथा किसी का ध्यान मशीनरी में है, तो उसे इतिहास नहीं मशीन का ज्ञान कराएं।
ऐसी शिक्षा पद्धति जो तरूणों को युवा अवस्था में जाकर भटकने को मजबूर ना करें।
शासन कहता है हम शिक्षा में यह परिवर्तन कर रहे हैं वह परिवर्तन कर रहे हैं।
प्रतिवर्ष करोड़ों छात्र-छात्राएं डिग्रियां हासिल कर रहे हैं पर क्या हर हाथ को काम मिला ?
या तो रोजगार है नहीं या फिर शासन अथवा समाज चाहता नहीं कि मेरे देश का युवा देश की तकदीर बदलले।
बाल्यकाल से ही यदि छात्र छात्रा को उसके मस्तिष्क में उठने वाले चिंतन के अनुसार अध्ययन करवाया जाएगा तो निश्चित ही शिक्षा का प्रत्येक घर परिवार पर प्रभाव पड़ेगा।
धनी व्यक्ति अपने पुत्र पुत्री को विदेश भेजेंगे पर देश के निर्धन परिवारों के बारे में नहीं सोचेंगे।
क्या? यही आधुनिक शिक्षा है और क्या इसी से राष्ट्र सुरक्षित है ?
कदापि नहीं तो हम सभी भारतीयों को अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव की पहल करनी चाहिए।
समाज में आधुनिकता जो परचम पहनावे दिखावे में चल रहा है परशिक्षा से रिक्त होता जा रहा है।
कब हम चेतेंगे।
आधुनिक शिक्षा के परिवेश में डूबा जब कोई पुत्र अपने माता-पिता की आज्ञा ओं का अनादर करता है तो मन पसीज जाता है ।
विचार आता है क्या यह वही भारत देश है जिसमें श्री राम ने अपने माता पिता की आज्ञा से महल का आनंद ठुकरा कर 14 वर्ष वन में बिताए ।
हैशिक्षा मनीषियों! जरा यथार्थ को पहचानो अपने-अपने उपक्रम को न चमकाते हुए राष्ट्र को आगे ले जाने का प्रयास करो।
एक होकर शिक्षा का ऐसा तेयार करो जिससे खिलने वाला अंकुरण राष्ट्र को महका सके।
आधुनिक समाज में शिक्षा नीति पर भाषण नहीं भाव चाहिए।
तो आइए ,आज से ही चेतनाकी ज्वाल सुलगा कर वेश ,परिवेश एवं वातावरण को पुनर्स्थापित करे जन जन में ऐसी भावनाएं
योजनाएं बनाएं कि प्रत्येक हाथ को काम, जगत में अपना नाम एवं अपने राष्ट्र का सम्मान बढ़ा पाए। —- “राजेश व्यास “अनुनय”