शिक्षा अपनी जिम्मेदारी है
शिक्षा का मंदिर खुला हुआ है,
बुद्धि के पट बंद है जिसके,
मंगहाई और बेरोजगारी का आलम,
संगत शराब व्यसन में डूबा है,
कैसे ना रहे खाली ये विद्यालय,
जब महत्व नहीं देंगे शिक्षा का ज्यादा।
लूट मार मची है इस कदर,
धंधा बन कर ही चला है जिधर,
ज्ञान की ज्योति जलेगी कैसे?
गरीबों के घर बच्चे पढेंगे कैसे ?
आडंबर की ओर जब दौड़ लगी है,
एक और मंदिर में होड़ लगी है।
खाली पेट न भजन होना है,
बिना शिक्षा के घर-घर में रोना है,
बुद्धि भ्रस्ट हुई शिक्षा बिन ,
तर्क शील फिर कैसे बनना है?
लाइन लगेगी मूर्खो की फिर,
विश्व गुरु का ये कहना है।
शिक्षा अपनी जिम्मेदारी है,
देनी है सबको विकास यादि पाना है,
द्वार खुले रखो बंद ना करो विद्यालय,
भविष्य इस पर निर्भर है आगे,
पुर जोर से अलख जलाओ हर घर मे,
आओ विद्यालय, पढ़ाओ सबको।