Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 May 2024 · 3 min read

शिक्षण और प्रशिक्षण (लघुकथा)

सचिव वैद्य गुरु तीन जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।

गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा है कि मंत्री, वैद्य और गुरु यदि भय बस सच न बोलकर (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलें अर्थात सामने वाले को खुश रखने के लिए बोलें तो उस राज्य का, उस रोगी के शरीर का और उस शिष्य का हानी होना निश्चित है।

फौज में अधिकारी की सेवा इतनी आसानी से नहीं होती है। सबसे पहले तो NDA, CDS, AFCAT की लिखित परीक्षा पास करनी होती है। उसके बाद SSB होता है जिसमें उम्मीदवार को 5 दिनों तक विभिन्न तरह की शारीरिक तथा मानसिक कठिन परीक्षणों से होकर गुजरना पड़ता है। जो बच्चे इंजीनियरिंग करके आते हैं उन्हें चार साल की प्रशिक्षण नहीं करनी पड़ती है। उन्हें सिर्फ डेढ़ साल की प्रशिक्षण करनी होती है। पहले 6 महिना का प्रशिक्षण हैदराबाद में होती है और बाद के एक वर्ष का प्रशिक्षण बैंगलुरू में होती है। उसके बाद पासिंग आउट परेड के साथ रैंक मिलता है और साथ में उनकी पहली पोस्टिंग भी आती है।

एक बार की बात है कि इसी प्रशिक्षण के दौरान एक प्रशिक्षार्थी था। जो हर क्षेत्र में आसानी से उतीर्ण करता गया लेकिन जब भी तैराकी की परीक्षा होती थी तो वह उसमें उतीर्ण नहीं हो पाता था। इसके दौरान हमेशा वह दुखी रहने लगा। नियम के अनुसार यदि कोई भी प्रशिक्षार्थी किसी भी एक परीक्षा में भी अनुतीर्ण (फेल) हो जाए तो उसे फ़िर से 6 महीने की प्रशिक्षण लेनी पड़ती है। अतः उसे सभी प्रकार की परीक्षाएं उतीर्ण करना अति आवश्यक होता है। इसलिए उस प्रशिक्षार्थी को इस बात का डर था कि कहीं तैराकी में वह अनुतीर्ण न हो जाए। वैसे तो प्रशिक्षक हमेशा यही कोशिश करता है कि कोई भी प्रशिक्षार्थी अनुतीर्ण नहीं हो। फाइनल के दो दिन पहले सभी कैडेट को तैरने के लिए ले जाया गया। सब कुछ तो वह कैडेट कर लिया था लेकिन जब तैरने की बारी आई तो वह स्वीमिंगपूल में कूदने में डरने लगा। प्रशिक्षक बोला कैडेट कूदो! ओके सर! कूदो! कैडेट! यस सर! तीसरी बार बोलने के बाद भी जब कैडेट नहीं कूद रहा था तो प्रशिक्षक ने उसे ऊपर से धक्का दे दिया। कैडेट पानी में कैसे कूदा उसे पता नहीं चला लेकिन अपनी जान बचाने के लिए वह जोर-जोर से अपना हाथ पाँव चलाने लगा और इसप्रकार वह धीरे-धीरे तैरना शुरू कर दिया। यह देखकर प्रशिक्षक खुश हो गया और कैडेट का डर अब समाप्त हो गया तथा वह तैरना सीख गया। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि यदि प्रशिक्षक ने उसे धक्का दिया तो क्या उसने गलत किया। क्या प्रशिक्षार्थी के साथ ज्यादती हुई। मेरा मानना है कि यहाँ भावनाओं को समझनी चाहिए यदि प्रशिक्षक धक्का देता है तो उसके मन में दो महत्वपूर्ण बातें होती हैं पहला कि थोड़ी सी सख्ती के बाद प्रशिक्षार्थी के मन के अन्दर का भय हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जायेगा और दूसरी बात कि वह स्वयं एक स्वस्थ और प्रशिक्षित व्यक्ति है जो विपरीत परिस्थियों में खुद आगे बढ़कर उसको सहारा दे सकता है। उसका स्वयं का आत्मविश्वास प्रशिक्षार्थी को डूबने नहीं देगा। इस प्रशिक्षण के पूरी होने पर दोनों का आत्मविश्वास बढ़ता है। शिक्षण और प्रशिक्षण में यही मूलभूत अंतर होता है। इसे समझना आवश्यक है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद जी ने कहा था- “जिसने नाकामयाबी की कड़वी गोली नहीं चखी हो, वो कामयाबी का महत्व नहीं समझ सकता है”। आरम्भ की असफलता से सीख ली जाए और सकारात्मक सोंच के साथ आगे बढ़ें तो यही असफलता, सफलता की पहली सीढ़ी बन जाती है। प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षक को कभी-कभी शख्त निर्णय लेने पड़ते हैं। इस बात को समझना जरूरी है।

जय हिन्द

Language: Hindi
1 Like · 38 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रातों की सियाही से रंगीन नहीं कर
रातों की सियाही से रंगीन नहीं कर
Shweta Soni
मां!क्या यह जीवन है?
मां!क्या यह जीवन है?
Mohan Pandey
स्वीकारोक्ति :एक राजपूत की:
स्वीकारोक्ति :एक राजपूत की:
AJAY AMITABH SUMAN
सज जाऊं तेरे लबों पर
सज जाऊं तेरे लबों पर
Surinder blackpen
शरद
शरद
Tarkeshwari 'sudhi'
राह भटके हुए राही को, सही राह, राहगीर ही बता सकता है, राही न
राह भटके हुए राही को, सही राह, राहगीर ही बता सकता है, राही न
जय लगन कुमार हैप्पी
अन्याय होता है तो
अन्याय होता है तो
Sonam Puneet Dubey
कलियुग में सतयुगी वचन लगभग अप्रासंगिक होते हैं।
कलियुग में सतयुगी वचन लगभग अप्रासंगिक होते हैं।
*प्रणय प्रभात*
The emotional me and my love
The emotional me and my love
Sukoon
घनाक्षरी छंद
घनाक्षरी छंद
Rajesh vyas
"कलम के लड़ाई"
Dr. Kishan tandon kranti
खोकर अपनों को यह जाना।
खोकर अपनों को यह जाना।
लक्ष्मी सिंह
" बीकानेरी रसगुल्ला "
Dr Meenu Poonia
पुस्तकें
पुस्तकें
डॉ. शिव लहरी
---माँ---
---माँ---
Rituraj shivem verma
कैसे यकीन करेगा कोई,
कैसे यकीन करेगा कोई,
Dr. Man Mohan Krishna
हिंदी
हिंदी
Pt. Brajesh Kumar Nayak
बना रही थी संवेदनशील मुझे
बना रही थी संवेदनशील मुझे
Buddha Prakash
कमरछठ, हलषष्ठी
कमरछठ, हलषष्ठी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
“ ......... क्यूँ सताते हो ?”
“ ......... क्यूँ सताते हो ?”
DrLakshman Jha Parimal
*जिंदगी*
*जिंदगी*
नेताम आर सी
.........
.........
शेखर सिंह
"एक ही जीवन में
पूर्वार्थ
कत्ल खुलेआम
कत्ल खुलेआम
Diwakar Mahto
"शिलालेख "
Slok maurya "umang"
बड़ी मुश्किल है ये ज़िंदगी
बड़ी मुश्किल है ये ज़िंदगी
Vandna Thakur
नशा-ए-दौलत तेरा कब तक साथ निभाएगा,
नशा-ए-दौलत तेरा कब तक साथ निभाएगा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
इंसानियत का एहसास
इंसानियत का एहसास
Dr fauzia Naseem shad
*जानो तन में बस रहा, भीतर अद्भुत कौन (कुंडलिया)*
*जानो तन में बस रहा, भीतर अद्भुत कौन (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
24/245. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/245. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...